साल 2022 में मध्यप्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि गरीब और मध्यमवर्गीय दंपतियों को महंगे इलाज से राहत देने के लिए सरकारी IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) सेंटर शुरू किए जाएंगे। योजना के तहत शुरुआत भोपाल से कर छह मेडिकल कॉलेजों में इस सुविधा को बढ़ाने का लक्ष्य था। लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी न तो कोई सेंटर शुरू हो पाया और न ही जमीन पर ठोस काम हुआ।
एम्स भोपाल में टेंडर दो बार रद्द, लैब भी बंद
एम्स भोपाल में IVF सेंटर की शुरुआत के लिए दो बार टेंडर जारी किए गए, लेकिन प्रशासनिक मतभेदों के चलते दोनों बार प्रक्रिया रद्द कर दी गई। पहले से शुरू किया गया इनफर्टिलिटी क्लिनिक और IVF स्किल लैब भी अब बंद पड़ी है। इस पर एम्स प्रबंधन ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी।
जीएमसी भोपाल में प्रोजेक्ट ठप
सुल्तानिया अस्पताल से हमीदिया अस्पताल के नए भवन में शिफ्टिंग के दौरान तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने IVF सेंटर का ऐलान किया था। भवन के 10वें खंड में जगह भी तय की गई और प्रस्ताव विभाग को भेजा गया, लेकिन तीन साल बाद भी प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया।
निजी IVF सेंटरों पर ही निर्भर मरीज
फिलहाल प्रदेश में 32 से अधिक निजी IVF सेंटर चल रहे हैं। इंदौर और भोपाल इनका मुख्य केंद्र बने हुए हैं। निजी अस्पतालों में एक IVF प्रक्रिया पर 1 से 3 लाख रुपए तक खर्च आता है, जबकि सरकारी स्तर पर यही सुविधा 40 से 80 हजार में उपलब्ध हो सकती है।
अन्य राज्यों में सफल मॉडल
दिल्ली का LNJP अस्पताल और चंडीगढ़ का जीएमसीएच-32 लंबे समय से सरकारी IVF सुविधा चला रहे हैं। यहां हर साल 150 से अधिक दंपतियों को कम खर्च में इलाज मिल रहा है और सफलता दर भी 70% से ज्यादा है।
घोषणा के तीन साल बाद भी मध्यप्रदेश में सरकारी IVF सेंटर न खुलने से हजारों दंपति अब भी इंतजार में हैं। अगर जल्द कदम नहीं उठाए गए, तो प्रदेश में बढ़ती IVF की मांग पूरी तरह निजी अस्पतालों पर ही निर्भर रहेगी।