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    चलती ट्रेन के पीछे भागती रही पत्नी, मौलाना ने लात मारकर किया बेदखल

    पति-पत्नी का रिश्ता प्यार, सम्मान और विश्वास पर टिका होता है, लेकिन चटगांव रेलवे स्टेशन पर जो हुआ, उसने इस पवित्र रिश्ते को शर्मसार कर दिया। खबर के मुताबिक एक मौलाना ने सबके सामने अपनी पहली पत्नी को बेरहमी से पीटा, धक्का दिया और फिर दूसरी पत्नी का हाथ पकड़कर ट्रेन में चढ़ गया। इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद लोगों में आक्रोश फैल गया।

    पहली पत्नी को देखते ही गुस्से से बौखलाया मौलाना

    घटना बांग्लादेश की बताई जा रही है, जहा मौलाना अपनी दूसरी पत्नी के साथ चटगांव जाने के लिए ट्रेन पकड़ने आया था। तभी अचानक उसकी पहली पत्नी स्टेशन पर पहुंच गई। शायद वह अपने पति से कुछ कहना चाहती थी, शायद अपनी शादी को बचाने आई थी, लेकिन उसे जो मिला, वह था अपमान, मारपीट और दर्द।

    जैसे ही मौलाना की नजर पहली पत्नी पर पड़ी, वह गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने एक भी शब्द सुने बिना उसे बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। महिला चीखती रही, मदद की गुहार लगाती रही, लेकिन मौलाना ने उसे एक पल के लिए भी नहीं बख्शा।

    घटना यहीं खत्म नहीं हुई। जब ट्रेन चलने लगी, तो बेबस पत्नी अपने पति के पीछे दौड़ने लगी। लेकिन मौलाना ने उसे धक्का दे दिया, लात मारी और ट्रेन में चढ़ गया। महिला रोती रही, चिल्लाती रही, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

    स्टेशन पर खड़े लोग बन गए तमाशबीन

    सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि मौलाना की दूसरी पत्नी यह सब चुपचाप देखती रही, लेकिन उसने कोई विरोध नहीं किया। स्टेशन पर मौजूद लोग भी तमाशा देखते रहे, मगर किसी ने हिम्मत नहीं की कि वह मौलाना को रोके।

    सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाए

    जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ ने इसे पति-पत्नी का निजी मामला बताया, तो कुछ ने इसे महिला पर हिंसा करार दिया।

    हालांकि, सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि कुछ लोग मौलाना के इस कृत्य को सही ठहरा रहे थे और इसे धार्मिक नजरिए से देख रहे थे। सवाल यह उठता है कि क्या किसी भी धर्म में महिलाओं के साथ इस तरह के व्यवहार की अनुमति दी जा सकती है?

    यह घटना सिर्फ एक महिला का दर्द नहीं है, बल्कि उन तमाम महिलाओं की कहानी है जो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने से डरती हैं।

    यह घटना यह दिखाती है कि कई बार रिश्तों में प्यार और सम्मान से ज्यादा ताकत और जुल्म को अहमियत दी जाती है। लेकिन क्या हम इसे सही ठहरा सकते हैं? शायद नहीं!

    अब वक्त आ गया है कि समाज इस तरह की हिंसा के खिलाफ आवाज उठाए और महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए मजबूती से खड़ा हो।

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