AIIMS Bhopal News : भोपाल एम्स में बीते एक हफ्ते में दो किडनी ट्रांसप्लांट किए गए हैं। यह उपलब्धि चिकित्सा क्षेत्र के लिए जहां एक तरफ बड़ी सफलता है, वहीं दूसरी ओर यह संकेत भी देती है कि युवाओं में किडनी रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार, 30 से 40 वर्ष की आयु के बीच किडनी फेल्योर के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अधिकांश मरीज अनकंट्रोल ब्लड प्रेशर या लाइफस्टाइल डिसऑर्डर के कारण इस स्थिति तक पहुँच रहे हैं।

दो सफल ट्रांसप्लांट, मरीजों ने पाई नई जिंदगी
एम्स भोपाल की नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी टीम ने पिछले सप्ताह दो मरीजों का सफल किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किया। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, दोनों मरीज अब स्वस्थ हैं और रिकवरी पर हैं। एक मरीज को उनकी माँ से किडनी दी गई, जबकि दूसरे को उनके भाई से। विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि इन दोनों केसों में सबसे खास बात यह रही कि मरीजों की उम्र 35 वर्ष से कम थी।
डॉ. मनोज तिवारी (वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट, एम्स भोपाल) के अनुसार, “पिछले पाँच वर्षों में युवाओं में किडनी फेल्योर के मामले 40 प्रतिशत तक बढ़े हैं। इनमें से अधिकतर मामलों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, या अत्यधिक नमक और जंक फूड का सेवन मुख्य कारण है।” डॉक्टरों ने यह भी बताया कि कई मरीजों को जब तक बीमारी का पता चलता है, तब तक किडनी का 80 प्रतिशत हिस्सा खराब हो चुका होता है।
एम्स की टीम ने बताया कि संस्था अब किडनी रोगों की अर्ली स्क्रीनिंग पर विशेष ध्यान दे रही है। नियमित हेल्थ चेकअप, रक्तचाप और शुगर स्तर की निगरानी को प्राथमिकता देने की सलाह दी जा रही है। अस्पताल प्रशासन के अनुसार, आने वाले समय में ट्रांसप्लांट यूनिट की क्षमता बढ़ाई जाएगी ताकि और अधिक मरीजों को समय पर उपचार मिल सके।
अनकंट्रोल ब्लड प्रेशर और गलत जीवनशैली से बढ़ रहा खतरा
चिकित्सकों के अनुसार, किडनी की समस्या का सबसे बड़ा कारण अनकंट्रोल ब्लड प्रेशर है। लगातार बढ़ा हुआ बीपी किडनी की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे फिल्ट्रेशन की क्षमता घट जाती है। इसके अलावा फास्ट फूड, अधिक नमक, शुगर ड्रिंक्स, और नींद की कमी भी किडनी पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं।
डॉ. रितु अग्रवाल (डायट विशेषज्ञ, एम्स भोपाल) के अनुसार, “युवाओं को अपनी डाइट में पानी की पर्याप्त मात्रा, फलों और सब्जियों को शामिल करना चाहिए। अधिक देर तक बैठे रहने और स्ट्रेस लेने से शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिससे किडनी पर असर होता है।”
एम्स भोपाल ने लोगों को संदेश दिया है कि ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना, नियमित जांच करवाना, और दवाओं का समय पर सेवन करना बेहद जरूरी है। डॉक्टरों का कहना है कि अगर शुरुआती स्तर पर रोग की पहचान कर ली जाए, तो ट्रांसप्लांट की जरूरत से बचा जा सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, भोपाल एम्स के दो सफल ट्रांसप्लांट न केवल चिकित्सा जगत की उपलब्धि हैं, बल्कि यह समाज के लिए चेतावनी भी हैं कि अब समय आ गया है – जीवनशैली में बदलाव लाकर स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का।


