भोपाल न्यूज़ – एम्स भोपाल में सामने आए दवा खरीदी घोटाले ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। कैंसर के इलाज में प्रयुक्त जेमसिटाबिन (Gemcitabin) इंजेक्शन को एम्स भोपाल में 2100 रूपए प्रति यूनिट की दर से खरीदा गया, जबकि यही इंजेक्शन एम्स दिल्ली में 285 रूपए और एम्स रायपुर में 425 रूपए प्रति यूनिट में खरीदा गया था। चार से सात गुना तक अधिक कीमत पर दवा की खरीद ने स्वास्थ्य मंत्रालय को सक्रिय कर दिया है।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक विशेष टीम ने गुरुवार को एम्स भोपाल पहुंचकर जांच की। टीम ने एम्स डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से करीब चार घंटे तक पूछताछ की और दवा खरीद से संबंधित दस्तावेजों, टेंडर प्रक्रिया और आपूर्तिकर्ताओं की जानकारी का गहन निरीक्षण किया।
जांच के प्रमुख बिंदु:
- जेमसिटाबिन इंजेक्शन की तीन अलग-अलग एम्स में खरीदी गई कीमतों में असमानता।
- अन्य दवाओं की कीमतें भी राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक।
- टेंडर प्रक्रिया और मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता को लेकर गंभीर संदेह।
- संभावित अनियमितता और गड़बड़ियों के संकेत।
अब क्या होगा?
जांच दल अपनी रिपोर्ट जल्द ही स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपेगा। मंत्रालय की ओर से स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी प्रकार की अनियमितता, लापरवाही या भ्रष्टाचार सामने आता है तो सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
जनता और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया:
- मरीजों पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ इस अनियमितता का सबसे बड़ा परिणाम है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने मामले की निष्पक्ष और शीघ्र जांच की मांग की है।
- यह घोटाला न सिर्फ जनता के पैसों के दुरुपयोग को उजागर करता है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों की जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है।
एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में यदि दवा खरीद में इस प्रकार की अनियमितताएं और संभावित भ्रष्टाचार सामने आते हैं, तो यह न केवल मरीजों की जान और जेब के साथ अन्याय है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। अब देखना यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच के बाद कौन जिम्मेदार ठहराया जाता है और क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
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