जबलपुर हाईकोर्ट ने मुआवजा राशि के मामले में रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल को जमकर फटकार लगाई। यह मामला भूमि अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था, जिसमें एकलपीठ जस्टिस विवेक अग्रवाल ने रीवा कलेक्टर से सवाल किया कि किस कानून में यह प्रावधान है कि मुआवजे के लिए कलेक्टर के पास जाकर भीख मांगी जाए।
कोर्ट ने कलेक्टर से कहा कि आपको यह पद जनता के अधिकारों का उल्लंघन और उनका शोषण करने के लिए नहीं दिया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा की एक अच्छा राज्य वह होता है, जो अपनी गलतियों को स्वीकार करे और नागरिकों को उनका हक दे।
यह है मामला:
यह मामला रीवा निवासी राजेश कुमार तिवारी द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा था, जिसमें साल 2012 में पारित भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून के तहत मुआवजा देने की मांग की गई थी। जब याचिका की सुनवाई हो रही थी, तब कलेक्टर ने अपने पति की तबीयत खराब होने का हवाला देते हुए व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग की थी। लेकिन, जस्टिस विवेक अग्रवाल ने उनके आवेदन को खारिज करते हुए शाम 4 बजे कलेक्टर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया।
कलेक्टर के कोर्ट में उपस्थित होने के बाद स्पष्ट हुआ कि कलेक्टर और सरकारी वकील के बयान में विरोधाभास था। जहां एक ओर सरकारी पक्ष ने कहा कि याचिकाकर्ता ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था, वहीं दूसरी ओर कलेक्टर ने यह स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता ने कभी मुआवजा लेने के लिए कलेक्टर से संपर्क ही नहीं किया।
इसके बाद कोर्ट ने कलेक्टर से यह भी पूछा कि वह यह बताएं कि किस कानून में यह कहा गया है कि भूमि विस्थापितों को मुआवजे की भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाए। रीवा कलेक्टर इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ रही।
अंत में, हाईकोर्ट ने कलेक्टर को फटकार लगाते हुए उनके कर्तव्यों को याद दिलाया और मामले की निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाए।