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    फर्जी उपस्थिति और शिक्षकों की लापरवाही पर कार्रवाई, पांच निलंबित

    जब बच्चो को नैतिकता की शिक्षा देने वाले शिक्षक ही फर्जीवाड़ा करने लग जाए तो आगामी पीड़ी दिशाहीन होने के साथ-साथ बर्बाद भी हो सकती है। वर्तमान समय में मध्य प्रदेश में कई जगह शिक्षक फर्जीवाड़ा पकड़ा जा रहा है। इनमे से कुछ मामले दमोह जिले के सरकारी स्कूलों में कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर के निरीक्षण के दौरान उजागर हुए है। जिले में लगातार किए जा रहे निरीक्षण के आधार पर पांच शिक्षकों के निलंबन के आदेश जारी किए गए।

    जिला शिक्षा अधिकारी एस.के. नेमा ने बताया कि शासकीय माध्यमिक विद्यालय परासई में कार्यरत माध्यमिक शिक्षक सविता जैन ने सार्थक एप पर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की। उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति से फर्जी उपस्थिति दर्ज कराई जा रही थी, जिसके चलते उन्हें तुरंत निलंबित कर दिया गया।

    इसी प्रकार, बटियागढ़ विकासखंड के प्राथमिक स्कूल चैनपुरा में सहायक शिक्षक बंदूलाल अहिरवार स्कूल से अनुपस्थित पाए गए। जांच के दौरान पता चला कि उनके स्थान पर एक बाहरी व्यक्ति पढ़ाने का कार्य कर रहा था। उन्हें भी निलंबित कर दिया गया। इसके अलावा, शासकीय प्राथमिक विद्यालय पिपरिया मिसर में प्राथमिक शिक्षक माधुरी शरण गुप्ता पर आरोप है कि उन्होंने अपनी सेल्फी किसी अन्य व्यक्ति से खिंचवाकर सार्थक एप पर नवंबर महीने की उपस्थिति दर्ज कराई। साथ ही, उनकी अनुपस्थिति में बाहरी व्यक्ति से कार्य कराया गया।

    शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सदगुंवा के प्रभारी प्राचार्य को भी निलंबित किया गया, क्योंकि उनकी कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम 29.33% और तिमाही परीक्षा का परिणाम 18.6% था, जो निर्धारित 30% से कम रहा।

    इसी क्रम में, शासकीय हाई स्कूल निमरमुण्डा के प्रभारी प्राचार्य सी.एस. राय को 10वीं और 12वीं परीक्षा के खराब प्रदर्शन (20% और 25% परिणाम) के कारण निलंबित किया गया। निलंबन के बाद इन सभी को संबंधित क्षेत्र के बीईओ कार्यालय से अटैच कर दिया गया है।

    लेकिन इन घटनाओ से सवाल यह उठता है की क्या अन्य ज़िलों में भी शासकीय संस्थानों में शिक्षकों की उपस्थिति और प्रदर्शन की नियमित निगरानी हो रही है, क्या प्रोफेसर और शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं, यह भी महत्वपूर्ण है कि डिजिटल उपस्थिति प्रणाली जैसे सार्थक एप का उपयोग कितनी सटीकता और पारदर्शिता से हो रहा है। क्या ऐसी व्यवस्थाओं को लागू करने के बावजूद फर्जी उपस्थिति या कार्य में लापरवाही के मामलों पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है? प्रोफेसरों और शिक्षकों की उपस्थिति और प्रदर्शन को मापने के लिए क्या अतिरिक्त कदम उठाए जा सकते हैं ताकि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके?

    लोगो द्वारा कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर के इस कदम को सराहा जा रहा है और पुरे प्रदेश में इस तरह के निष्पक्ष निरक्षण की मांग की जा रही है ताकि शिक्षा व्यवस्था में सुधार आ सके।

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