बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बीते तीन दिनों में 10 हाथियों की मौत ने सरकार पर सवाल उठ रहे है। मृत हाथियों में एक नर और नौ मादा हाथियां शामिल हैं, जिनमें से दो हाथिनी गर्भवती थीं। एकदम से इतनी बड़ी संख्या में हाथियों की मौत का यह मामला बेहद डरावना है।
प्राप्त समाचार के मुताबिक 29 अक्टूबर को बफर क्षेत्र के सलखनिया गांव में चार हाथियों के शव सबसे पहले मिले थे, जबकि सात अन्य हाथी बीमार थे। जिसके बाद प्रशासन की आखें खुली और हाथियों का इलाज शुरू किया गया, लेकिन सभी प्रयास विफल साबित हुए। 30 अक्टूबर को चार और 31 अक्टूबर को दो और हाथियों ने दम तोड़ दिया। मृत हाथियों में 2 हथिनी गर्भवती थी। बीमार हाथियों में से केवल एक हाथी स्वस्थ हो सका, जो जंगल की ओर लौट गया। एपीसीसीएफ एल. कृष्णमूर्ति के अनुसार, 13 हाथियों के इस समूह में अब केवल तीन ही हाथी बचे हैं, जिनकी कड़ी निगरानी का दावा किया जा रहा है।
प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण ‘माइकोटॉक्सिन’ नामक विषैले तत्व को बताया गया है, जो कोदो की फसल में पाया गया था। हालांकि, विस्तृत फोरेंसिक जांच के बाद ही इस घटना के असल कारण सामने आ सकेंगे। इसलिए मृत हाथियों के नमूने हिस्टोपैथोलॉजिकल और टॉक्सिकोलॉजिकल परीक्षण के लिए जबलपुर और राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, सागर भेजे गए हैं।
इतने हाथियों की मौत के बाद राज्य सरकार ने जांच के लिए एसआईटी और एसटीएसएफ की टीमों को बांधवगढ़ में तैनात किया। माइकोटॉक्सिन के बारे में और जानकारी के लिए प्रदेश के वन्यजीव चिकित्सक आईवीआरआई बरेली, डब्ल्यूआईआई देहरादून, राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला सागर और सीसीएमबी हैदराबाद के विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं। इसके साथ ही घटनास्थल के पास फैली कोदो की फसल को नष्ट कर दिया गया है।
क्या है माइकोटॉक्सिन?
माइकोटॉक्सिन एक विषैला तत्व है, जो कुछ विशेष प्रकार की फफूंद से उत्पन्न होता है। यह फफूंद कुछ फसलों और खाद्य पदार्थों पर पनपती है और अत्यंत घातक होती है।
संसाधनों की कमी और लापरवाही पर उठ रहे सवाल
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बीमार हाथियों के इलाज में संसाधनों की कमी भी देखी गई। जैसे एक हाथी को एक दिन में लगभग सौ लीटर पानी चाहिए होता है, लेकिन उन्हें छोटे बोतल से दवाइयाँ दी गईं। जिससे विशेषज्ञों का सवाल है कि इतने विशालकाय जानवरों के लिए उपयुक्त चिकित्सा संसाधन क्या उपलब्ध हैं?
इस मामले में यह लापरवाही की बात सामने आ रही है की हाथियों के मौत के बाद भी, जांच और नमूने केवल सलखनिया गांव के पांच किलोमीटर के दायरे में ही एकत्र किए गए, जबकि हाथियों का मूवमेंट बमेरा डैम और आसपास के अन्य क्षेत्रों में भी था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने हाथियों को कोदो खाते हुए नहीं देखा, और यदि कोदो इतना ही हानिकारक होता तो यह मनुष्यों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता। इस घटना से सरकार और प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे है की हाथियों की सुरक्षा व्यवस्था में क्या कमी रह गयी, इलाज में उपयोग हो रहे संसाधनों की कमी क्यों थी, माइकोटॉक्सिन का खतरा पहले से क्यों नहीं समझा गया, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व वन्यजीव चिकित्सा सुविधाओं का अभाव क्यों, हाथियों के उपचार के वक़्त क्या वह विशेषज्ञ मौजूद थे, इस घटना में वन विभाग की क्या जवाबदेही रही एवं भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या योजना है।
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