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    भारतीय इतिहास में ओरछा बुंदेलखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर 

    ओरछा, मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित, बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। यह स्थान न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए, बल्कि यहां के भव्य मंदिरों, महलों और छतरियों में समाहित बुंदेली स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। खासकर, यहां स्थित “राम राजा मंदिर” उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर के साथ-साथ ओरछा के अन्य स्थापत्य स्मारक, हर साल लाखों पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

    ओरछा का इतिहास और स्थापना

    ओरछा की स्थापना 1531 में बुंदेला शासक महाराजा रुद्र प्रताप सिंह द्वारा की गई। गढ़कुंडार से राजधानी को यहां स्थानांतरित करते हुए उन्होंने इसे एक नई पहचान दी। रुद्र प्रताप ने यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और रणनीतिक महत्व को देखते हुए इस क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया। उनके बाद, उनके पुत्र महाराज भारती चंद (1531-1554) ने ओरछा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

    महाराजा मधुकर शाह (1554-1592), जो मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थे, बुंदेला वंश के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने चतुर्भुज मंदिर का निर्माण शुरू कराया और राजा महल का कार्य पूर्ण कराया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दीवाने-आम और अन्य महत्वपूर्ण भवनों का भी निर्माण कराया। उनके शासनकाल के दौरान बुंदेली स्थापत्य कला अपने चरम पर थी।

    मधुकर शाह के पश्चात राम शाह (1592-1605) शासक हुए, परन्तु कमजोर शासक सिद्ध हुए। मधुकर शाह के तृतीय पुत्र वीर सिंह देव (1605-1627) बड़े प्रतापी एवं नीति निपुण थे। रामशाह के पश्चात वही ओरछा के शासक रहे। इनके काल में जहांगीर महल, लक्ष्मी मंदिर आदि अनेक भवनों का निर्माण हुआ। वीर सिंह के पश्चात जुझार सिंह (1627-1635) शासक हुए।

    सन् 1635 से 1641 तक ओरछा शासक विहीन रहा, फिर जुझार सिंह के भाई पहाड़ सिंह (1641-1653) को दक्षिण से बुलाकर ओरछा का शासक बनाया गया। पहाड़ सिंह के पश्चात सुजान सिंह (1653-1672) शासक बने, परन्तु शासन सत्ता पहाड़ सिंह की पत्नी हीरा देवी के हाथ में रही। सुजान सिंह के कोई संतान न होने से उनके भाई इन्द्रमणि (1672-1675) ओरछा के शासक बने। उनके पश्चात उनके पुत्र जसवन्त सिंह (1675-1684) शासक हुए, परन्तु नि:संतान होने से उनके भाई भगवन्त सिंह (1684-89) शासक बने। भगवन्त सिंह की मृत्यु के उपरान्त हरदौल के वंशज उदैत सिंह (1689-1736) ने 47 वर्ष शासन किया। इनका शासन काल ओरछा के समस्त शासकों में ज्यादा समय तक रहा। उदैत सिंह के बाद उनके नाती पृथ्वी सिंह (1736-1752) शासक बने। पृथ्वी सिंह की मृत्यु के बाद उनके पोते सामन्त सिंह (1752-1765) ओरछा के शासक बने। सामन्त सिंह की मृत्यु के बाद हेत सिंह (1765-1767), पजन सिंह (1767-72), मान सिंह (1772-1774), भारती चन्द (1775-1776) तथा विक्रमजीत सिंह ओरछा के शासक बने। विक्रमजीत सिंह ने 1787 में ओरछा से टीकमगढ़ राजधानी स्थानान्तरित की। विक्रमजीत सिंह के बाद धर्मपाल सिंह (1817-34), तेज सिंह (1834-1841), सुजान सिंह (1841-1854), हमीर सिंह (1854-74), प्रताप सिंह (1874-1930) एवं अंतिम शासक वीर सिंह द्वितीय शासक बने।

    वीर सिंह देव का युग

    Photo of Raja Veer Singh Deo
    Photo of Raja Veer Singh Deo

    महाराजा वीर सिंह देव (1605-1627) बुंदेला वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। उन्होंने ओरछा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके काल में जहांगीर महल, लक्ष्मी मंदिर और अन्य भव्य इमारतों का निर्माण हुआ। यह महल और मंदिर न केवल उनकी वास्तुकला की समझ का प्रमाण हैं, बल्कि उस समय की राजनीतिक और सांस्कृतिक ताकत का भी प्रतीक हैं।

    ओरछा के महत्वपूर्ण स्थापत्य स्मारक

    1. राजा महल

    इस महल का निर्माण महाराजा रुद्र प्रताप ने शुरू किया और उनके पुत्र महाराज भारती चंद ने इसे 1539 में पूरा किया। महल में रामायण और अन्य पौराणिक कथाओं के भित्तिचित्र बने हैं, जो आज भी संरक्षित हैं। इन चित्रों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग हुआ है। महल के अंदरूनी कक्षों में रामायण, विष्णु के दशावतार और अन्य पौराणिक प्रसंगों को दर्शाया गया है।

    1. जहांगीर महल

    यह महल वीर सिंह देव ने मुगल सम्राट जहांगीर के स्वागत के लिए बनवाया था। यह महल हिंदू और मुगल स्थापत्य शैलियों का अनूठा मिश्रण है। इसमें 236 कक्ष हैं, जिनमें से 100 तलघर में और 136 ऊपर स्थित हैं। महल की जालीनुमा खिड़कियां और अलंकृत द्वार इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं।

    1. लक्ष्मी मंदिर

    यह मंदिर देवी लक्ष्मी को समर्पित है और पहाड़ी पर स्थित है। महाराजा वीर सिंह देव द्वारा निर्मित यह मंदिर त्रिकोणीय स्थापत्य शैली का अद्भुत उदाहरण है। मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत के दृश्य चित्रित हैं।

    1. चतुर्भुज मंदिर

    इसे मधुकर शाह ने भगवान राम के लिए बनवाया था। हालांकि, जब तक यह मंदिर तैयार हुआ, रानी गणेश कुंवर ने राम की मूर्ति को अपने महल में स्थापित कर दिया, जिसे आज राम राजा मंदिर के रूप में पूजा जाता है। चतुर्भुज मंदिर बुंदेली स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

    1. लाला हरदौल का चबूतरा

    यह स्मारक राजा जुझार सिंह के भाई हरदौल की स्मृति में बना है। हरदौल को बुंदेलखंड में विशेष सम्मान प्राप्त है। यहां की परंपरा के अनुसार, शादी में पहला निमंत्रण हरदौल को दिया जाता है।

    1. छतरियां

    बेतवा नदी के किनारे स्थित छतरियां बुंदेला राजाओं के स्मारक हैं। इनमें मधुकर शाह, वीर सिंह देव और अन्य शासकों की छतरियां प्रमुख हैं। ये छतरियां बुंदेली स्थापत्य और कला का बेहतरीन उदाहरण हैं।

    1. राम प्रवीन महल

    मधुकर शाह के पुत्र इंद्रजीत सिंह ने इसे अपनी प्रेयसी रामप्रवीन के लिए बनवाया था। रामप्रवीन एक प्रसिद्ध कवयित्री, संगीतकार और कुशल नर्तकी थीं।

    बुंदेली चित्रकला और भित्तिचित्र

    ओरछा के महलों और मंदिरों में बुंदेली चित्रकला का अद्भुत प्रदर्शन है। इन भित्तिचित्रों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया है।

    • राजा महल में विष्णु के दशावतार, रामायण के दृश्य, और लोक जीवन के चित्र अंकित हैं।
    • लक्ष्मी मंदिर में रामायण के राम-रावण युद्ध, कृष्ण लीला और अन्य पौराणिक प्रसंगों को दर्शाया गया है।

    राम राजा मंदिर का महत्व

    राम राजा मंदिर, ओरछा का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। रानी गणेश कुंवर द्वारा अयोध्या से लाई गई भगवान राम की प्रतिमा यहां स्थापित की गई थी। इस मंदिर में भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।

    ओरछा की विरासत

    ओरछा न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति और वास्तुकला का जीवंत प्रमाण है। यहां की संरचनाएं और भित्तिचित्र, बुंदेलखंड की समृद्ध संस्कृति और गौरवशाली इतिहास की कहानियां सुनाते हैं। राम राजा मंदिर के प्रति श्रद्धालु भाव, ओरछा की सांस्कृतिक जड़ों को और अधिक गहरा बनाता है।

    ओरछा के बाद बुंदेला राजाओं ने अपनी राजधानी टीकमगढ़ स्थानांतरित की, लेकिन राम राजा का प्रभाव और श्रद्धा आज भी पूरे बुंदेलखंड में कायम है।

    हाल ही में ओरछा को अक्टूबर 2024 में, ओरछा के ऐतिहासिक स्मारकों के समूह के लिए युनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल करने के लिए डॉसियर (दस्तावेज) प्रस्तुत किया गया था। यह कदम ओरछा की अद्वितीय वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। यदि युनेस्को इसे स्वीकार करता है, तो यह भारत का एकमात्र राज्य-संरक्षित विश्व धरोहर स्थल बन जाएगा।

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