हरियाणा के झज्जर जिले के किसान अनिल कुमार का मानना है कि “जैसा अन्न, वैसा तन और मन।” अनिल मिश्रित फसलें उगाते हैं, फसल चक्र का पालन करते हैं और देसी बीजों का संरक्षण कर रहे हैं। उनके खेतों में तिल, ईख, कपास और सब्जियों की बेलें एक ओर लगी हैं, जबकि बाजरा और मूंग दूसरी ओर उगाए गए हैं।
किसान अनिल कुमार ने अपने खेत में कई प्रकार के पेड़ लगाए है। जैसे आंवला, मौसमी, जामुन और नीम के पेड़। ये पेड़ नाइट्रोजन को स्थिर करने में मदद करते हैं और प्राकृतिक खेती में अहम भूमिका निभाते हैं। पेड़ों की अधिक संख्या से ऑक्सीजन का स्तर भी बना रहता है और वातावरण स्वच्छ रहता है।
रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं:
अनिल अपने खेतों में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं एवं उन्होंने अपने खेतों के चारों ओर ऊंची मेड़ें बनाई हैं ताकि अन्य खेतों से कीट उनके खेतों तक न पहुंच सकें। मिश्रित खेती के उदाहरण में उन्होंने अपने खेत में 5 तरह की फसलें उगाई हैं, जिनमें ककड़ी की बेल, लोबिया, कपास, मक्का और चौलाई के पौधे शामिल हैं। इनकी मेड़ों पर जाटी, सहजन और शीशम के पौधे भी लगाए गए हैं। अनिल खेतों में खरपतवार को हाथों से हटाते हैं और रसायनिक दवाओं के बजाय प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करते हैं।
गेहूं की देसी किस्म पर जोर:
अनिल गेहूं की खेती को बढ़ावा देते हैं, लेकिन वे हाईब्रिड किस्मों के बजाय देसी किस्म का गेहूं उगाते हैं। वे बताते हैं कि गेहूं के साथ चना और वृशम जैसी फसलें भी मिश्रित रूप से उगाते हैं, जिनका उपयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। उनका मानना है कि देसी गेहूं में ग्लूटेन की मात्रा कम होती है, जो शुगर के रोगियों के लिए फायदेमंद है।
साथ ही, देसी गेहूं में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व अधिक होते हैं। हालाँकि इसकी पैदावार कम होती है, लेकिन अगर देसी खाद और स्प्रे का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो पैदावार अच्छी हो सकती है।
जिसके बाद अनिल अपनी फसलों को गुरुग्राम में बेचते हैं, जहां उनके कुछ नियमित ग्राहक उनसे जुड़े रहते हैं और अपनी आवश्यकताओं के अनुसार फसल खरीदते हैं। इससे अनिल को खरीददार की चिंता नहीं रहती क्योंकि खरीददार पहले से ही उनसे संपर्क कर भाव तय कर लेते हैं।
अनिल कुमार की यह कहानी प्राकृतिक खेती के महत्व और उसके फायदे को दर्शाती है, जो न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभदायक है।